Monday, January 14, 2013

अस्पताल की शिशु नर्सरी में आग


पीबीएम अस्पताल समूह के बच्चा अस्पताल के नर्सरी खण्ड में कल तड़के तीन बजे आग लग गई। प्रारम्भिक अनुमान के अनुसार करीब एक करोड़ रुपये का नुकसान हो गया है। प्रथम दृष्ट्या आग का कारण शार्ट सर्किट बताया गया है। जांच कमेटियां बन गई हैं। जिला प्रशासन ने एक कमेटी बनाई है तो अस्पताल प्रशासन ने अपनी अलग जांच कमेटी बनाई है। रिकार्ड देखा जाय तो अस्पताल प्रशासन द्वारा इस तरह की जांच कमेटियां साल में लगभग बारह बनने का प्रमाण मिलेगा। अस्पताल में आए दिन होने वाली बदमजगियां, दुर्घटनाएं, धोखाधड़ियां उजागर होने पर इस तरह की कमेटियां बना दी जाती हैं। इन कमेटियों का आधार एजेन्डा एक ही होता है कि उनके किसी भी साथी की नौकरी पर बन आए। हमारा कहा यदि गलत लगता हो तो इन जांच कमेटियों की रिपोर्टों को देख लें। आज तक किसी डॉक्टर, कर्मचारी को दोषी बताया गया है क्या?
पीबीएम अस्पताल की साफ सफाई की बात पहले कर चुके हैं। पूरे अस्पताल में बिजली के तार बेतरतीब लटके और बंधे हुए मिलेंगे। भद्दे तो वह लगते ही हैं। दुर्घटना का यदा-कदा होना ही भगवान के होने में भरोसा बढ़ाता है अन्यथा सभी तरह की लापरवाहियां इतनी हैं कि कभी भी कुछ भी हो सकता है। पीबीएम अस्पताल ही क्यों बिजली के तारों के साथ लापरवाही लगभग हर सरकारी भवन में मिल जायेगी।
घटना को लेकर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, अस्पताल अधीक्षक और बच्चा अस्पताल के प्रभारी के रस्म अदायगी बयान चुके हैं। सूबे की सरकार में मंत्री और जिले के विधायक वीरेन्द्र बेनीवाल चूंकि कल यहां थे, घटना स्थल के दौरे की रस्म वह भी पूरी कर चुके हैं। जिले और संभाग के उच्च प्रशासनिक अधिकारी भी घटना के बाद घटना स्थल पर पहुंचे ही थे। हर दुर्घटना के बाद यह सब यूं घटित होता है जैसे स्क्रिप्ट पहले से ही लिखी पड़ी हो।
कल तड़के की घटना के बाद कुछ लोगों ने तत्परता से परिस्थितियों को और बिगड़ने या कहें जान-माल के अधिक नुकसान होने से बचाया तोड्यूटीके भाव से नहीं, वे संवेदनशील थे और उन्होंने मानवीयता के नाते ही ऐसा किया।
पीबीएम अस्पताल संभाग का बड़ा चिकित्सालय है। सूबे में सात संभाग हैं, इस स्तर के सात अस्पताल तो होंगे ही। जिला स्तरीय अस्पतालों की बात अलग। विनायक ने 3 नवम्बर 2012 के अपने सम्पादकीय में इन अस्पतालों में व्यवस्था के लिए नई प्रशासनिक सेवा शुरू करने का सुझाव दिया था जिसकी सख्त जरूरत महसूस की जाने लगी है। क्योंकि देखा गया है कि वरिष्ठ डॉक्टरों को इस सेवा में लगाने से दोहरा नुकसान होता है, एक तो उन्हें प्रशासनिक प्रशिक्षण नहीं होता। दूसरा इस तरह की जिम्मेदारियां सम्हालने के बाद वे अपने पेशे के प्रति भी कम समर्पित देखे गये हैं।
राज्य सरकार को चाहिए कि हॉस्पिटल प्रशासन की नई सेवा शुरू करे और इन अस्पतालों के अधीक्षक और उपाधीक्षक पद पर चयनितों को ही लगाएं ताकि डॉक्टर आजीवन अपने पेशे के साथ न्याय कर सके और सोलह सौ वर्षों से उनके द्वारा ली जा रही डॉक्टरी प्रतिज्ञा पर भी वे खरे उतरें।
इस सेवा की परीक्षा के लिए वही पात्रता रखेंगे जिन्होंने एमबीबीएस के बादमास्टर्स इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशनकी डिग्री ले रखी हो, यदि ऐसा होता है तो अकादमिकों और प्रशासनिकों के अहम् टकराने की सम्भावनाएं भी कम रहेंगी और इन अस्पतालों का ढर्रा भी कुछ ठीक होगा।
(विनायक, 3 नवम्बर 2012)
14 जनवरी, 2013

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