Friday, January 11, 2013

किस तरह की समता के नाम पर यह सब


शब्दकोश मेंसमताशब्द के जो अर्थ दिए गये हैं, वे हैं-चौरस होने का भाव, सादृश्य, बराबरी, अनुरूपता, निष्पक्षता, धीरता, उदारता, अभिन्नता, पूर्णता और साधारणता। आजादी बाद देश में लागू आरक्षण व्यवस्था और पदोन्नति में आरक्षण का विरोध समता और समानता के नाम पर किया जा रहा है। यह विरोध पिछली सदी के आखिरी दशक की शुरुवात में ज्यादा मुखर तब हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए मंडल कमीशन की सिफारशें लागू कीं। इसके बाद से आरक्षण का विरोध सिलसिलेवार शुरू हो गया। समता-समानता के नाम से कई संगठन खड़े हो गये और कई आन्दोलनों के नाम भी इन्हीं शब्दों को लेकर रखे जाने लगे। जो लोग इन शब्दों का उपयोग आरक्षण विरोध के प्रयोजन से कर रहे हैं वे यह भूल जाते हैं कि सामाजिक समानता का मतलब व्यापक भारतीय समाज की समानता से होगा, तभी वह समानता कहलायेगी। जातिविशेष, धर्मविशेष और वर्गविशेष की आन्तरिक समानता-समानता कैसे हो सकती है।
समानता के नाम पर आरक्षण विरोध की बात करने वाले यह भ्रम क्यों पाले हुए हैं कि केवल उनके हक सुरक्षित रहने पर ही समानता आयेगी। असली समानता तो तभी कहलाएगी जब प्रत्येक भारतीय, वह चाहे जिस किसी भी जाति, धर्म और वर्ग से हों, सभी का एकसमान रहन-सहन हो, सभी को समान सुविधाएं हासिल हों। ऐसा जब तक नहीं होगा तब तक कम हैसियत वाले प्रत्येक को विशेष अवसर देने होंगे। सभी को समान अवसर के नाम पर समाज के कम हैसियत वालों को रहन-सहन के उस स्तर से वंचित रखना जिस स्तर पर समाज का एक हिस्सा जीवन यापन कर रहा है, समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध ही है।
समता आन्दोलन समिति कल जयपुर में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का सम्मान इसलिए कर रही हैं कि उन्होंने पदोन्नति में आरक्षण का विरोध किया है। यह सम्मान करने वाले कमोबेश वही लोग हैं जिन्होंने अखिलेश के पिता मुलायमसिंह को तब जम कर कोसा है जब वे मण्डल सिफारिशों के समर्थक  थे। मुलायम और अखिलेश ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर आज भी वहीं हैं। पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ वे इसलिए हुए हैं कि उन्हें पता है कि पदोन्नति में आरक्षण से लाभान्वित अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकांश लोग उनका वोटबैंक नहीं हैं। इन दोनों वर्गों के लोग उनकी धुर विरोधी मायावती के साथ नहीं हो कर उनके साथ होते तो अखिलेश पदोन्नति में आरक्षण का विरोध हरगिज नहीं करते। कल को यह स्थितियां बदल भी सकती हैं, मुलायम-अखिलेश तब पदोन्नति में आरक्षण के समर्थन में खड़े होते एक मिनट भी नहीं लगाएंगे! तब यह सम्मानकर्ता किनका मुंह ताकेंगे?
राजनीतिज्ञों ने हमेशा पीठ दिखलाई है, उनका लक्ष्य सिर्फ कुर्सी है। और उनकी इसी मानसिकता ने देश की समस्याएं बढ़ाई हैं। आरक्षण और आरक्षण में पदोन्नति का विरोध करने वाले इस तथ्य को नजरंदाज कर रहे हैं कि सभी नेता वोटों के कारण इधर-उधर होते हैं और अधिकांश वोट देश में सभी तरह के आरक्षितों के पास ही हैं। इसलिए तो आरक्षण खत्म होगा और पदोन्नति में आरक्षण भी वे ले लेंगे। इसलिए आरक्षण और पदोन्नति में आरक्षण के विरोधी अपना समय, अपनी ऊर्जा और अपना धन इनके विरोध में खर्च करने की बजाय आरक्षण और पदोन्नति में आरक्षण की विसंगतियों को दूर करने में लगाएं ताकि इसकी जरूरत एक समय बाद स्वतः खत्म हो सके। यह बात समझ में आनी इसलिए मुश्किल है कि इससे राहत तत्काल नहीं मिलेगी लेकिन आने वाली पीढ़ियों को तो आपकी तरह खीजना नहीं पड़ेगा!
11 जनवरी, 2013

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