Saturday, December 8, 2012

भानीभाई : महापौरी के तीन वर्ष


शहर महापौर भवानीशंकर शर्मा ने अपने महापौरी कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने पर होटल बसंतबिहार पैलेस में कल पत्रकारों और शुभचिंतकों को बुलाया। उनके साथ बातचीत की, अपनी उपलब्धियों को गिनाया, कमियां स्वीकारी और सबके साथ भोजन भी किया। कार्यकाल के अपने पहले साल के कामकाज से वे खुद भी संतुष्ट नहीं हैं। लेकिन उनका मानना है कि बाकी के दो साल उपलब्धियों भरे रहे हैं, उनके अनुसार उन्होंने कुछ ऐसा भी कर दिखाया जो इस स्थानीय निकाय के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ, जैसे पहली बार रिहाइशी कॉलोनी का आयोजन करना। इसके अलावा चौंतीस वर्षों बाद सफाईकर्मियों की भर्ती खोलना भी बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं और है भी।
328 सफाईकर्मी अगर शहर में आएंगे तो उम्मीद करनी चाहिए कि शहर साफ-सुथरा दीखने लगेगा। लेकिन इसे स्वीकार करने में कोई हरज नहीं है कि शहर साफ-सुथरा तभी रह और दीख सकेगा जब यहां के बाशिंदे ऐसा चाहते हों, अन्यथा सात लाख लोग अगर अपने शहर को गंदा करने में लगे हों तो 328 तो क्या 3280 सफाई कर्मचारी भी और लगा दिये जाएं तो शहर साफ-सुथरा नहीं दिखेगा। इसके लिए नगर निगम यह भी कर सकता है कि वह अभियान चला कर नगरवासियों को यह बताये कि शहर को साफ-सुथरा रखने में आम शहरियों की क्या भूमिका हो सकती है।
भानीभाई ने जो उपलब्धियां गिनाई उन्हें असम्भव इसलिए नहीं कहा जा सकता कि एक तो वे सूबे के मुख्यमंत्री के खास हैं, काम करने वाले के लिए यह एक बड़ी अनुकूलता होती है, अलावा इसके वे पेशे से पत्रकार रहे हैं सो यह भी वे बखूबी जानते-समझते हैं कि क्या-क्या काम होने है, किस तरह होने है और संसाधन कैसे जुटाये जा सकते हैं।
सबसे चुनौती भरा काम तो निगम के दफ्तर के ढर्रे को सुधारने का है, यह दफ्तर पब्लिक डिलिंग का दफ्तर है और आम शहरियों में धारणा है कि वहां सामान्य काम करवाना भी आसान नहीं हैं। आमजन को जरूरत का सर्टिफिकेट बनवाने के लिए कई-कई दिन तक चक्कर लगाने पड़ते हैं, जबकि सभी तरह के ऐसे सर्टिफिकेट प्रार्थनापत्र के साथ कागज के पूर्ण होने पर चौबीस घंटे में दिये जा सकते हैं। इसके अलावा शहर के अवैध निर्माणों की सूचनाएं पहले जमादार और सफाईकर्मी पहुंचाते थे, यह अतिरिक्त काम अब या तो होता ही नहीं है या फिर ऊपरी कमाई का जरीया बन गया है। शहर की सड़कों पर बीच सड़क के गड्ढे या उन पर क्रॉस होने वाली टूटी नालियों को अड़तालीस से बहत्तर घंटे में सुधारने तथा बंद रोडलाइटों को छत्तीस घंटे में चालू करने के लिए अलग-अलग टास्कफोर्सों का गठन किया जा सकता है। यह लोकतंत्र है जिसमें काम होते दीखने भी जरूरी हैं और उक्त सब सुझाव काम होते दीखने के लिए ही हैं। अन्यथा जनता बिना यह सोचे पासा पलटने में देर नहीं लगाती कि बदली में जो आएंगे वे भी ऐसे ही होंगे।
नगर विकास न्यास अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद के मनोनयन को भी एक वर्ष हो गया है। उक्त सभी बातें उनके लिए भी हैं, वे बस निगम की जगह न्यास बांच लें। निगम और न्यास दोनों कार्यालयों का काम का ढर्रा एक-सा ही है, डिग्री का कोई फर्क हो तो अलग बात है। हाजी मकसूद ने भी आज निगम के कल के कार्यक्रम जैसा ही न्यास की ओर से एक कार्यक्रम वहीं होटल बसंतबिहार पैलेस में आयोजित किया है। हाजी मकसूद अहमद और भानीभाई दोनों ही उसी कांग्रेस से हैं जो पार्टी अपने को विश् में सादगी की मिसाल महात्मा गांधी की विरासती पार्टी मानती है और यह दोनों ही अपने को उन अशोक गहलोत का नजदीकी मानते हैं जो सार्वजनिक जीवन में सादगी पर जोर देते रहे हैं। फिर भानीभाई और हाजी मकसूद, दोनों महलों में बने होटलों का मोह क्यों नहीं छोड़ते? यह कार्यक्रम और खाना सरकिट हाउस या ढोलामारू में भी हो सकते थे! इस बहाने वहां का खाना और व्यवस्था, दोनों से पत्रकार भी रूबरू होते। पत्रकार रहे हैं तो वहां के प्रबंधक भी शायद ठीक-ठाक करने की कोशिश करते और उन्हें राजस्व भी मिलता। हो सकता है वे खाने की व्यवस्था से इनकार कर देते! लेकिन इसके विकल्प भी तो हैं? और फिर खाने की जरूरत ही क्यों, अल्पाहार से भी काम चल सकता है।
8 दिसम्बर, 2012

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