कोटगेट थाने में कल एक मामला दर्ज हुआ है जिसमें अपने को बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल का पदाधिकारी बताने वाले मक्खनलाल ने मंडल भवन के एक किरायेदार के खिलाफ मारपीट का आरोप लगाया है|
बीकानेर के लगभग सभी व्यापार संघ इस मंडल के सम्बद्ध सदस्य हैं और दो सौ पचास से अधिक व्यापारिक प्रतिष्ठान इसकी संरक्षक परिषद के सदस्य हैं| विनायक ने अपने 2 नवम्बर, 2011 के अंक में ‘अपनी बात’ के जरीये लिखा था कि इस मंडल का संविधान या तो अपरिपक्व लोगों द्वारा बनाया हुआ है या फिर ऐसे भले और भरोसा करने वाले लोगों द्वारा जो ये मान कर चलते थे कि विवाद की स्थितियां कभी उत्पन्न होंगी ही नहीं| उन्हें क्या पता था इस पर कभी ऐसे लोग भी काबिज हो जायेंगे जो केवल अपने अहम् और अपने हाजरियों की अस्पष्ट मंशाओं के पोषक की भूमिका निभाने में लगे रहेंगे|
कल के झगड़े के प्रकरण की आशंका विनायक ने एक वर्ष पहले ही जाहिर कर दी थी-
‘शुरुआती कई दशकों
तक इस संगठन
के आर्थिक हालात
ठीक नहीं थे| औपचारिक सहयोग छोड़ दें तो कोई व्यापारी समय देने
को ही उत्साहित
नहीं था|
इसीलिए लंबे समय तक सोमदत्त श्रीमाली
ही अध्यक्ष बने रहे| जैसी
कि लोक में कैबत है कि झगड़े की जड़ अधिकांशत जर,
जोरू और जमीन
ही होती है| इस संगठन में भी झोड़ के दो कारण इन्हीं
कारणों में से रहे हो सकते
हैं| यूआईटी
ने जमीन दे दी तो जैसे-तैसे भवन बन गया| जमीन
की लोकेशन आबाद
हुई तो एक बैंक और अन्य
किरायेदार के रूप में आ गये| मंडल के आर्थिक
हालात ठीक हुए तो ऐसे लोग जो संपन्न थे या जो बहुत
संपन्न नहीं भी थे, उन्हें
भी इसके माध्यम
से अपनी छोटी-मोटी राजनीतिक-प्रशासनिक महत्वाकांक्षाएं पूरी
होती दीखने लगी| अहम् और स्वार्थ
टकराने लगे,
मंडल के उद्देश्य
गौण हो गये| बीकानेर व्यापार उद्योग
मंडल की वर्तमान
अराजक स्थिति के कमोबेश यही कारण
हैं|
(‘विनायक’ 2 नवम्बर, 2011)
हाल फिलहाल मंडल की स्थिति यह है कि कभी प्रभावी रहे संरक्षक मंडल को एकदम किनारे कर दिया गया है| संरक्षक मंडल के अधिकांश पदाधिकारियों
का भाव यह है कि कौन लफड़े में पड़े, या वे मानते हैं कि मंडल अध्यक्ष शिवरतन अग्रवाल तो ठीक है पर मक्खन अग्रवाल से उनकी नाड़ क्यों दबती है पता नहीं| कुछ मंडल सदस्यों का मानना है कि मक्खन की मंशा सही नहीं है और शिवरतन अग्रवाल उनके आगे बेबस है| दूसरी और संरक्षक परिषद के सदस्यों का मानना है कि विधान के अनुसार ताकतवर ‘संरक्षक परिषद’ ही है और वे कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं|’ शिवरतन अग्रवाल का कार्यकाल खत्म हुए दो साल से ज्यादा हो गया है| ऐसा सुनते एक साल से ज्यादा हो गया है, लेकिन वे किसी निर्णय पर आज तक नहीं पहुंचे हैं| संरक्षक परिषद के जिम्मेदार सदस्यों से यह पूछने वाला भी कोई नहीं है कि आपके घर का कोई प्रकरण होता तो इस तरह की ढिलाई बरतते क्या?
खैर, व्यापार उद्योग मंडल की करोड़ों की सम्पत्ति और लाखों की मासिक आय है| कइयों की गिद्धदृष्टि
इस पर होगी ही| व्यापार मंडल और संरक्षक परिषद के सदस्य खुद जिम्मेदारी नहीं दिखाते हैं तो सरकार को चाहिए कि इस मंडल पर कोई रिसिवर बिठा दे या लम्बे समय से निर्वाचित पदाधिकारी नहीं है तो मंडल का पंजीकरण रद्द करके सम्पत्ति अपने कब्जे में ले ले| अन्यथा हो सकता है कि कुछ स्वार्थी लोग ऐसी गोटी बिठाएंगे कि वे इस सम्पत्ति पर हमेशा के लिए कुंडली मार कर बैठे जायेंगे, क्योंकि व्यापारियों
में से अधिकांश ऐसे ही हैं कि उन्हें अपने व्यापार से फुरसत नहीं है| इसकी बानगी में व्यापार मंडल के चुनाव लम्बे समय से न होना तो है ही, उससे संबद्ध लगभग सभी छोटे व्यापार संघों के चुनाव भी लम्बे समय से नहीं हुए हैं| संविधान पालना के अभाव में अधिकांश व्यापार संघ अधिकृत नहीं रहे हैं, ऐसे में केवल संरक्षक परिषद ही है जो इस मंडल पर अधिकृत हक रखने की स्थिति में है!
7 दिसम्बर, 2012
No comments:
Post a Comment