Monday, December 3, 2012

विधायक सिद्धीकुमारी


बीकानेर (पूर्व) की विधायक सिद्धीकुमारी को अब आने लगी है कार्यकर्ताओं की याद........ भाजपा के आम कार्यकर्ता उनसे आज भी नहीं मिल सकते हैं........ चन्द चापलूस नेताओं ने उन्हें घेर रखा है............ विधायक के पीए व्यास बीकानेर भाजपा संगठन के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं।
आज सुबह का यह फेसबुक स्टेटस शहर भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के संयोजक विष्णुपुरी का है। विधायक सिद्धीकुमारी के बारे में इस तरह की बातें और धारणाएं आम लोगों में लम्बे अरसे से है कि वह सर्वसुलभ नहीं हैं। हालांकि सर्वसुलभ तो बीकानेर (पश्चिम) के विधायक गोपाल जोशी भी नहीं हैं, लेकिन उनसे रू-बरू होना इसलिए मुश्किल नहीं है कि वह कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं और पार्टी के प्रदर्शनों में भी अकसर भाग लेते हैं। सिद्धीकुमारी पहले तो शहर में रहती ही कम हैं, रहती भी हैं तो उनके निवास शिवविलास तक पहुंच बनाना अपने आप में टेढ़ी खीर है, जैसे-तैसे कोई पहुंच भी जाये तो उसे कई औपचारिकताओं से गुजरना होता है। उनके निजी सहायकों को या विधायक को लगे कि मिलना जरूरी है तब भी बाद के दिनों का समय दिया जाता है। इतने समय बाद तो अधिकांश जरूरतमंदों की जरूरत ही जवाब दे जाती है।
सिद्धीकुमारी सामन्ती घराने से हैं, सिद्धीकुमारी ही क्यों, सामन्ती घरानों के चुने हुए अधिकांश जन-प्रतिनिधियों का व्यवहार लगभग ऐसा ही पाया-देखा जाता है। सिद्धीकुमारी के दादा डॉ. करणीसिंह पचीस सालों तक क्षेत्र के सांसद रहे, सर्वसुलभता उनकी भी ऐसी ही थी। जब उन्हें लगा कि अब सर्वसुलभ हुए बिना राजनीति नहीं कर पाएंगे तो मैदान से बाहर हो गए। सिद्धीकुमारी ने कहीं मैदान से बाहर होने का मन तो नहीं बना लिया है, यदि बना लिया है तो उन्हें अपने मन की इस बात को सार्वजनिक कर देना चाहिए ताकि उनका मतदाता-कार्यकर्ता उनसे उम्मीदें करना छोड़ दे। लोकतन्त्र में जनप्रतिनिधि की पहली योग्यता तो सर्वसुलभता ही होनी चाहिए जो आजकल कम ही देखने को मिलती है।
राज्यपाल मार्ग्रेट आल्वा के हाल ही के बीकानेर दौरे पर सिद्धीकुमारी के दादा और अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज डॉ. करणीसिंह की मूर्ति के अनावरण का कार्यक्रम स्थानीय राजकीय स्टेडियम में हुआ था। यह स्टेडियम डॉ. करणीसिंह के नाम पर ही है और उनकी मूर्ति उनके परिवार ने ही बनवा कर उपलब्ध करवाई है। इस कार्यक्रम में सिद्धीकुमारी की गैर हाजिरी केवल चर्चा का कारण बनी बल्कि उनके बारे में लम्बे समय  से चल रही अनर्गल चर्चाओं को भी उनकी इस अनुपस्थिति से बल मिला। सार्वजनिक जीवन जीने वाले की अपनी निजी जिन्दगी भी होती है, इससे किसी को भी इनकार नहीं है। लेकिन उनकी निजता की सीमाएं उनके शयनकक्ष-स्नानघर तक ही होनी चाहिए। इस प्रकार उनके सभी कार्यकलाप शत-प्रतिशत निजी नहीं हो सकते। आम मतदाताओं को सही लेकिन उनके कार्यकर्ताओं और अनुसरण करने वालों की जवाबदेही उनकी ओर से आम आदमी के सामने बनती है। इसलिए इस तरह के जनप्रतिनिधियों-नेताओं को कम से कम कार्यकर्ताओं और अनुसरण करने वाले के साथ सतत संवाद रखना ही चाहिए।
3 दिसम्बर, 2012

1 comment:

Astrologer Sidharth said...

पूर्णतया सहमत...