Friday, December 28, 2012

हींग लगी न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा


बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल नम्बर ले गये हैं। खबर है कि लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाने के साथ-साथ उनका नाम उन पांच सांसदों में भी शामिल है, जिन्होंने सर्वाधिक निजी विधेयक प्रस्तुत किये हैं। काश यह सूची भी जारी होती कि ऐसे सभी विधेयक किसी मुकाम को हासिल हुए या हश्र को! एक अन्य मेरिट में अपने ये सांसद पिछड़ गये हैं, वह मेरिट है सदन में प्रश् पूछने वालों की। इस मेरिट में प्रथम पांच में अपने सांसद का नाम कहीं नहीं है। पता नहीं उन्हें इस मेरिट की सूचना नहीं थी या उनसे प्रश् बने ही नहीं। वैसे जिस तरह के प्रश् लोकसभा-राज्यसभा में पूछे जाते रहे हैं, उन्हें देख कर तो नहीं लगता कि अपने सांसद को उतनी उकत ही हो। जरूर कोई कोई गफलत हुई है। उनके ध्यान से यह बात उतर ही गई लगती है कि प्रश् पूछने वालों की भी कोई मेरिट बनती है। अन्यथा वे इसमें भी नम्बरदार होते हैं।
स्कूल में पढ़ते थे तो वे बुद्धू सहपाठी भी तब तारीफ पा जाते थे जब हाजिरी की मेरिट बनती या टीम-टाम होकर आने वाले छात्रों की तारीफ होती। चूंकि इन दोनों में ऐसे छात्रों को खुद कुछ नहीं करना होता। मम्मी ढंग से तैयार करके समय पर स्कूल रवाना कर देती है। रही बात सवाल समझने की और उत्तर देने की तो इन दोनों ही कामों में मम्मी काम आती है और पापा। क्योंकि आज तक तो ऐसी पोसाळ के बारे में सुना है मैकाले की नई तरह की कक्षाओं के बारे में कि उनमें छात्रों के साथ मम्मी-पापाओं को भी बैठने की छूट हो। ठीक ऐसे ही अपनी संसद में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि अर्जुनरामजी की जगह कोई युधिष्ठिरराम जा सके। चलो, ठीक है हमारे सांसद ने किसी में तो नम्बरदारी दिखलाई।
जो ऐसा होता कि लोकसभा सचिवालय प्रतिवर्ष यह मेरिट भी बनाता कि कौन सांसद अपने क्षेत्र के कामों को लेकर सबसे ज्यादा प्रयत्नशील रहे हैं तो शायद अपने ये सांसद कभी मेरिट में नहीं पाते। हां वे यह प्रावधान करवाने में जरूर सचेष्ट देखे जाते कि इसमें एक मेरिट पीछे से भी बननी चाहिए। यदि ऐसा हो तो पीछे से फर्स्ट-सेकिंड तो वे ही सकते हैं।
कहा जाता है कि पाग बांधने की प्रेरणा अर्जुनराम को डॉ. बी.डी. कल्ला के एक मोसै (ताने) से मिली है। एक  प्रेरणा उन्हें उनसे और भी लेनी चाहिए। क्योंकि कल्ला उनसे हर मामले में वरिष्ठ हैं। उम्र में बड़े हैं इसलिए प्रोफेशन में बड़े अपने आप ही हो लिए। राजनीति में कल्ला 1980 में सक्रिय हुए तो अर्जुनराम 2008 के विधानसभा चुनावों में अपनी ड्यूटी से च्युत देखे गये तो उन्हें उस ड्यूटी से हटा दिया गया। इससे उनकी निष्ठा अपनी ड्यूटी के प्रति नहीं किसी विचारधारा विशेष के प्रति जाहिर हुई। निष्ठा जाहिर हुई तो इनाम में 2009 के लोकसभा चुनाव का टिकट मिल गया। टिकट मिला तो जीत भी गये। इस सबसे यह पुख्तगी भी होती है कि सत्तारूप कोई भी हो, चाहे धन हो या पद, बिना धर्मच्युत हुए नहीं मिलते हैं।
इस सबके चलते अर्जुनराम सन् 2009 में सांसद हो लिए। अगला चुनाव उन्हें फिर लड़ना है तो इन पांच सालों में शहर में जो कुछ भी हो रहा है उसे कल्ला की तर्ज पर अपनी उपलब्धियों के खाते में डाल कर फोल्डर छपवाने की तैयारी उन्हें अभी से कर लेनी चाहिए। हो सकता है कल्ला की सूची में भी वही सब गिनाए गये हों। इससे कोई फरक पड़ने वाला नहीं है। आम आदमी की स्मृति अब और भी कम काम करने लगी है। कल्ला सूची जारी करेंगे 2013 में। मेघवाल को करनी है 2014 में।हींग लगी फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा।
28 दिसम्बर, 2012

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