26 जनवरी से बीकानेर में शुरू होने वाले ऊंट उत्सव की तैयारियां शुरू हो गई लगती हैं। उत्सव से सम्बन्धित समाचार मीडिया में देखे और पढ़े जाने लगे हैं। पर्यटन ने पूरी दुनिया में व्यवसाय का रूप ले लिया है। हर वह शहर, गांव और भू-भाग जहां पर कुछ समय सुकून के साथ बिताया जा सकता है, ऐसे सभी स्थानों की ब्राण्डिंग कर उसे प्रचारित किया जाने लगा है। प्रदेश के पर्यटन विभाग ने बीकानेर में इस तरह की कुछ सम्भावनाओं को चिह्नित किया और इसे भी पर्यटन नक्शे पर ले लिया। बहुत ज्यादा न सही फिर भी ठीक-ठाक तादाद में देशी-विदेशी पर्यटक यहां आने लगे हैं। होटल बनने और रोशन होने लगे हैं। कुछ लोग गाइड बन कर तो कुछ अनधिकृत गाइड बन रोजगार पाने लगे, अनधिकृत गाइड को लपका लिखा जाने लगा है जो उचित नहीं है। कुछ ऐसे भी हैं जो दाढ़ी-मूंछ बढ़ाकर परम्परागत पोशाक में सुर्खियां पाने के साथ-साथ अब इनाम और फीस भी हासिल करने लगे हैं। हमारे मीडिया ने इन स्वांगधारियों को ‘रोबिला’ नाम पता नहीं क्यों दिया है जबकि इनमें से अधिकांश को आयोजकों के सामने गिड़गिड़ाते देखा जा सकता है। हां, लगभग लुप्तप्रायः सवारी तांगों का फिर से दिखाई देने का श्रेय पर्यटन को दिया जा सकता है।
इस वर्ष भी ऊंट उत्सव की रस्म अदायगी फिर हो रही है, सार्वजनिक धन में से लाखों खर्च कर पर्यटन विभाग अपने इन आयोजनों में हजारों को भी नहीं जुटा पाता। कार्यक्रम न तो समय पर होते हैं और न ही व्यवस्थित। शायद ऐसा इसलिए किया जाता हो कि ‘भारतीय समय’ और ‘भारतीय व्यवस्था’ की साख बनी रहे! ऊंट उत्सव की जुगलबन्दी के लिए पिछले वर्ष की भान्ति इस वर्ष भी प्रशासन प्रदेश के संस्कृति विभाग से ‘कला साहित्य ‘एण्ड’ संस्कृति मेले’ के नाम पर बजट शायद ले आएंगे। ऐसे आयोजनों पर होने वाले खर्चों का हिसाब ऑडिट के अलावा कोई मांगने वाला नहीं है, और ऑडिट को सैट करना आयोजकों को अच्छी तरह आता है, उम्मीद की जानी चाहिए कि स्थानीय आयोजक अपनी ‘साख’ में कुछ बट्टा तो लगने देंगे!
20 दिसम्बर, 2012
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