सूबे में कांग्रेस की सरकार ने चार साल पूरे कर लिए हैं। सरकार के मुखिया अशोक गहलोत के इस कार्यकाल की कार्यशैली का बखान किसी कहावत से करें तो ‘दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है’ ही सटीक होगी। गहलोत के पिछले कार्यकाल और कार्यशैली को आंकड़ों में बेहतरीन माना गया था। मीडिया ने गहलोत के उस कार्यकाल को एक से अधिक बार देश के अन्य या कई मुख्यमंत्रियों
से अव्वल बताया था। बावजूद इस सबके जनता ने 2008 के चुनावों में उन्हें नहीं चुना। इस न चुने जाने में जाट समुदाय और राज्य कर्मचारियों की असरकारी भूमिका मानी जाती है। बिना आग्रह और दुराग्रह के गहलोत के दोनों कार्यकालों की तुलना करें तो उनका पिछला कार्यकाल ज्यादा बेहतर था, तब कुछ बड़े और सही निर्णय उन्होंने लिए थे। इस कार्यकाल को देखें तो पहले साल से ही गहलोत की टकटकी 2014 के विधानसभा चुनावों पर रही कि उन्हें इस आगामी चुनाव को न केवल जीतना है बल्कि अपने बूते सरकार भी बनानी है। कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया सिवाय लोक लुभावन योजनाओं के। जबकि ढुलमुल सरकारी तंत्र के चलते इन सभी योजनाओं का लाभ राजीव गांधी के कहे अनुसार आमजन तक पहुंच पन्द्रह प्रतिशत ही रहा है। सरकारी तंत्र को कसने की ‘हिमाकत’ गहलोत ने जो अपने पिछले कार्यकाल में की थी वैसे तेवरों की छाया तक उन्होंने अपने इस कार्यकाल पर नहीं पड़ने दी। एक साल बचा है, देखते-देखते यह भी निकल जायेगा, मानो उलटी गिनती शुरू हो गई है, फिर से ट्रेक पर आना होगा।
विनायक ने पहले भी एक बार लिखा है कि कांग्रेसी और भाजपाई कार्यकर्ताओं
में एक बड़ा अन्तर यह है कि भाजपाई चवन्नी को अठन्नी करके दिखाने की कुव्वत रखते हैं लेकिन कांग्रेसी चवन्नी को चवन्नी दिखाने का जोश भी नहीं दिखा पाते।
बीकानेर की ही बात करें तो शहर में वसुन्धरा के कार्यकाल से इन चार वर्षों में काम ज्यादा हुए हैं लेकिन अधिकांश काम पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाये हैं। हाजी मकसूद जबसे अध्यक्ष बने हैं, तब से उन सभी कामों में शिथिलता आ गई है, जिन्हें पिछले कलक्टर ने शुरू करवाया था। चतुराई तो यह होती कि वे उन्हें पूर्ण करवाते, डॉ. कल्ला से पत्थर लगवाते और वाह-वाही ले लेते। कल्ला ने आज तक अधिकांश वाह-वाहियां बिना खुद कुछ किये ही ली हैं! कल उन्होंने कह दिया कि शहर के चुने हुए प्रतिनिधि यहां का पक्ष ढंग से नहीं रख पा रहे हैं इसलिए बीकानेर पिछड़ रहा है। अब डॉ. कल्ला को यह कौन बताए कि उनके यह कहने में कौन-सा राग सुनाई दे रहा है, जबकि वे खुद अपने को सूबे में मुख्यमंत्री के दावेदारों की कतार में मानते हैं, और राज्यवित्त आयोग के अध्यक्ष भी हैं। लोक में हनुमान को बल याद दिलाने की बात तो की जाती है, जब कोई खुद ही राम बन बैठे तो लोक में यही माना जायेगा कि राम तो सर्वशक्तिमान होते हैं अतः उन्हें बल याद दिलाने की कोई जरूरत नहीं समझता।
शहर कांग्रेसियों को कबूतर उड़ाना छोड़ कर विकास के अधूरे कार्यों को पूरा करवाकर उसकी क्रेडिट लेने को तत्पर हो जाना चाहिए। लोक में कबूतर उड़ाना और मक्खी मारना मुहावरों का प्रयोग अच्छे भाव से नहीं किया जाता है, और ‘कबूतरबाजी’ तो चार सौ बीसी में आने लगी है अब।
13 दिसम्बर, 2012
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