Wednesday, December 12, 2012

12-12-12 के बहाने आत्मावलोकन


1-1-1 से शुरू हुआ यह सिलसिला लगभग बारह साल बाद आज थम जायेगा, क्योंकि साल में महीने बारह ही होते हैं अन्यथा यह आगे भी चलता रहता। लेकिन मीडियाको निराश होने की जरूरत इसलिए नहीं है कि वह कुछ कुछ युतियां और ले ही आएगा। मनीषी डॉ. छगन मोहता का ब्यूरोक्रेट्स के बारे में दिया गया उदाहरण याद गया जिसमें उन्होंने मशीन की तरह सोचने वाले ब्योरोक्रेट्स के वर्ग को मनुष्य और मशीन के संगम से बना बताया था। उन्होंने यह भी बताया कि इसीलिए इन ब्यूरोक्रेट्स में संवेदनशीलता नहीं होती।
डॉ. मोहता की बताई इस युति के प्रकाश में मीडिया या कहें टी.वी.-अखबार वालों में पनपी नई तरह की इच्छाओं की बात करते हैं। इस तरह की इच्छाएं तकनीक, लालच और समय (टीवी में) या स्पेस-जगह (अखबार में) के संगम से पैदा 12-12-12 जैसी खबरें सनसनी पैदा करती हैं। अन्यथा संवत् और तिथियों के इस देश में ईस्वी सन् की ऐसी तारीखें हर शताब्दी में ही आती रही हैं। विक्रम, शक और हीजरी संवत में भी ऐसे योग जब तब बनते रहे हैं लेकिन इससे यानी ईस्वी सन् 2001 से पहले कभी मीडिया के इन दोनों रूपों को इस तरह की युतियां जोड़ने की जरूरत नहीं रही। टीवी को चौबीसों घंटे चलाए रखना है और आकार में लगातार सिकुड़ते और पृष्ठों में बढ़ते इन ब्रॉडशीट के अखबारों की केवल जगह भरना बल्कि इस भराव को चटपटा बनाने की मजबूरी की उपज है इस तरह खबरों को घड़ा जाना।
इस तरह के योगों को अंक शास्त्र से भी जोड़ कर ऐसे जुनून का माहौल बना दिया जाता है कि धर्मभीरू लोग भी बिना मुहूर्तों के शादियां करने लगते हैं, बल्कि हद तो यह हो रही है कि प्रसूताएं बच्चे को प्राकृतिक रूप से जन्मने देकर शल्य क्रिया करवा कर असमय या बलात कोख से बाहर कर देती हैं या करने को मजबूर होती हैं। कहा जाता है आजकल वैसे भी लालच में निजी नर्सिंग होम वाले प्राकृतिक प्रसव होने नहीं देते।
अकसर देखते पढ़ते हैं ये मीडिया वाले आए दिन इसी तरह कुछ घड़ते और जुनून पैदा करवाते हैं। अभी दिवाली गई है, दिवाली से महीने पहले से बाजार को रोशन करने के लिए कोई दस से ज्यादा खरीद के मूहर्त इस मीडिया ने प्रचारित कर दिये। होना तो यह चाहिए था कि संचार या कम्यूनिकेशन की ताकत लगातार बढ़ने पर जिम्मेदारी का भाव भी बढ़ता जबकि हो इससे ठीक उलट रहा है, आए दिन 12-12-12 जैसी सनसनियां घड़ी और पुरसी जाने लगी हैं। इस तरह की गैलाइयां मीडिया ने पूर्व में जिनसे करवाई हैं उनसे वह कभी सर्वे भी करवाये कि वे सब अपनी उस हरकत को किस रूप में याद करते हैं। क्योंकि जीवन की असल सच्चाइयां इस तरह की सनसनियों से एकदम भिन्न होती है।
12 दिसम्बर, 2012

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