Saturday, November 24, 2012

कल का हादसा और ये शिक्षण संस्थान


जयपुर रोड स्थित, रायसर के मरुधर इंजीनियरिंग कॉलेज में कल एक छात्र करंट लगने से बुरी तरह घायल हो गया। उसे बचाने आया दूसरा छात्र भी करंट की चपेट में आने से नहीं बच सका। कॉलेज में आज कोई सेमिनार आयोज्य है, इसी सिलसिले का बैनर लगाने को उक्त छात्र ऊपर चढ़ा था। वहीं से गुजर रही हाईटेंशन लाइन से उसका सम्पर्क हुआ। गंभीर घायलावस्था में उसे जयपुर रेफर किया गया है।
स्थानीय प्रशासन यदि मुस्तैद रहता तो पहले तो जिस भूखण्ड से होकर हाईटेन्शन लाइनें गुजर रही हैं, उस पर कॉलेज भवन बनाने की इजाजत ही नहीं देता, दे भी देता तो इस शर्त के साथ कि कॉलेज शुरू करने से पहले यह खंभे और तार हटवा दिये जायेंगे। पहले ऐसा कुछ लिखित में हुआ भी है तो भी सरकार के इजाजत एनओसी देने वाले अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कैसे माना जा सकता है? इस दुर्घटना के लिए कॉलेज प्रशासन के साथ-साथ उन सभी सरकारी अधिकारियों पर आरोप तय होने चाहिए जो इस भवन के निर्माण हेतु एनओसी के लिए विभिन्न तरह से जिम्मेदार हैं। हमारे देश में देखा गया है कि किसी की लापरवाही से और गैर जिम्मेदारी से हठात किसी की जान पर बन आती है, बावजूद इसके वे नहीं सुधरते। पीड़ित परिवार भी किसी किसी प्रकार के दबाव में जाता है, दोषी को सजा नहीं मिलती है और इस तरह के हादसे आये दिन दरपेश आते रहते हैं।
उक्त के अलावा भी इन वर्षों में कुकुरमुत्तों की तरह फैले इन निजी शिक्षण संस्थानों पर सरकार इतराये बिना नहीं रहती। इन संस्थानों के अधिकांश मालिक छात्रों और उनके अभिभावकों से लगभग झपटने की मुद्रा में पेश आते हैं। दाखिले के समय सब्जबाग दिखाते हैं। छात्रों की संख्या से ज्यादा इन कॉलेजों में सीटें हो गई हैं। जिन कॉलेजों की प्रतिष्ठा थोड़ी-बहुत ठीक हैं उन्हें तो पर्याप्त दाखिले मिल जाते हैं। शेष झपटा-झपटी में ही लगे रहते हैं। इन कॉलेजों में जो विषय पढ़ाये जा रहे हैं, उनमें तय मानकों के अनुसार फैकल्टी पायी जाती है प्रयोगशालाएं और हीं पुस्तकालय। कई संस्थानों की डिग्रियों को आधिकारिक मान्यता भी नहीं मिली हुई है। किसी छात्र या अभिभावक को इसका पता चल जाता है तो उन्हें दाखिले के समय आश्वस्त कर देते हैं कि सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं, कुछ ही दिनों में मान्यता मिल जाएगी। बाद में कॉलेज प्रशासन आंख दिखाने से भी नहीं चूकता। जिस किसी संस्थान को मान्यता मिल भी गई है तो कुछ ले-देकर मिली हुई है या निरीक्षण के समय किसी फैकल्टी को लाकर खड़ा कर लेते हैं। अस्थाई रूप से पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं सजा देते हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसा निजी कॉलेजों में ही होता हो। अब तो कुछ सरकारी कॉलेज भी इस तरह से गोटिया फिट करने लगे हैं!
24 नवम्बर, 2012

1 comment:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सारकार के बाबुओं को बस नोट चाहि‍ए, सुरक्षा की बात फ़ालतू है