Thursday, November 22, 2012

‘प्रशासन शहरों के संग’


राज्य विधानसभा के चुनाव अगले वर्ष हैं| लगता है अशोक गहलोत की सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल से और 2008 की हार से कई सबक लिए हैं| कहावत है कि दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है, गहलोत की स्थिति और सावचेती दोनों ही कुछ ज्यादा ही वैसी सी है| लोककल्याण के नाम से वे जो कुछ कर रहे हैं वह लोक-लुभावन कम वोटर लुभावन ज्यादा लग रहा है| कुछ अरसा पहले मंत्रिमंडल ने अजब फैसला लेते हुए जून 1999 तक के शहरी कब्जों को नियमित करने का निर्णय किया था| अब उसे अधिकारिक बिसात पर सजाने के लिए 21 नवम्बर से एक माह से ज्यादा समय तक चलने वाला अभियानप्रशासन शहरों के संगशुरू किया है| नियमन का यह फैसला शुद्ध रूप से वोटर लुभावन है| लुभाएगा यह कितनों को, वह तो चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा|
सार्वजनिक जमीनों को लेकर पिछले लम्बे अरसे से सरकार बहुत लापरवाह भी है| जगह-जगह जरूरतमंद कम और मू-माफिया पसरे दिखलाई देते हैं-असल जरूरतमंद हैं भी तो नियमन होने के बाद ये भू-माफिया उन्हें औने-पौने दाम देकर और कब्जे के लिए नई जमीनें सुझा कर बेदखल कर देते हैं|
सभी भू-माफियाओं के लिए यह अभियानगंगासे कम नहीं है| सब के सब अपने पाप धो लेंगे| असली जरूरतमंदों में अधिकांश वैसे के वैसे ही रहने हैं| नगर निगम और नगर विकास न्यास के स्थाई  अधिकारी और कर्मचारी लगभग अच्छी तरह जानते हैं कि कौन जरूरतमंद है और कौन शख्स भू-माफिया, बावजूद इसके इस तरह के अभियानों में देखा गया है कि वे भू-माफियाओं के प्रति ही उदार होते हैं| भवानीशंकर शर्मा और मकसूद अहमद दोनों को राजनीति करनी है और अगले चुनावों के लिए वोटों केझारेभी जुटाने हैं और साधन भी| इनके आंख-कान नजदीकी कार्यकर्ता ही होते हैं, उन पर भरोसा करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं होता| ये नजदीकी कार्यकर्ता सबकुछ नीर-क्षीर कर पायेंगे, इसमें संशय है, शत-प्रतिशत छोड़ उनसे आधी उम्मीदें करना भी बेमानी होगा| जिला कलक्टर जो चाहें और वे कुछ अतिरिक्त मुस्तैदी दिखायें तो असल जरूरतमंदों को कुछ लाभ हो सकता है और भू-माफियाओं पर थोड़ी-बहुत लगाम लग सकती है|
न्यास और निगम को यह भी देखना चाहिए कि इस अभियान की आड़ में न्यास और निगमों की जमीनों पर कब्जा किए बैठे भू-माफिया पट्टे बनवाने में सफल हो जाएं| इस तरह की शहरी जमीनें करोड़ों रुपयों की है| इसके अलावा भी जिन कच्ची बस्तियों के बाशिन्दों को लाभान्वित करना है उन सभी बस्तियों के यथास्थिति के नक्शों का अध्ययन कर उनके भूखण्डों को आयत और वर्गाकार करने, सड़कों-गलियों को पर्याप्त चौड़ा, सीधा और आर-पार करने, पानी की आवक-निकासी को और सबस्टेशनों के स्थान सहित बिजली आदि की व्यवस्था को योजनाबद्ध करने के हिसाब से भूखण्डों की काट-छांट करने के बाद ही पट्टे जारी किये जाने चाहिए| ताकि वहां के बाशिन्दे भविष्य में न्यूनतम सुविधाओं और जरूरतों के साथ जीवन-यापन कर सकें| अन्यथा देखा गया है कि जिन बस्तियों का नियमन पहले हो चुका है-उनमें उक्त सभी तरह की समस्याएं यथावत हैं| अभी पट्टा बनवाते समय तो सभी इस तरह की कटाई-छंटाई के लिए तैयार हो जाएंगे लेकिन पट्टा बनने के बाद कोई भी एक इंच जगह नहीं छोड़ना चाहता|
22 नवम्बर, 2012

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