Tuesday, November 20, 2012

धार्मिक आयोजनों में हादसे और श्री कोलायतजी और नागणेचीजी मन्दिर


देश के धार्मिक स्थलों पर प्रतिवर्ष दो-तीन दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें दस-बीस से लेकर सौ-डेढ़ सौ श्रद्धालु तक अपनी जान खो बैठते हैं। देखा गया है कि इस तरह के हादसों के ज्यादातर शिकार या तो बच्चे या किशोरवय के होते हैं या महिलाएं होती हैं। ऐसी दुर्घटनाओं की जांच से पता चलता है कि जिस दहशती बात से भगदड़ मचती है वह अफवाह निकलती है। इस तरह की घटनाओं में यह भी होता है कि कोई मनचला खुद घड़ के बात फेंकता है या फिर किसी को भ्रम हो जाता है कि ऐसा कुछ घटित हो गया है जिसके चलते यथास्थान तत्काल छोड़ने में ही भलाई है।
ऐसी किसी भी स्थिति से बचाव का एकमात्र उपाय धैर्य है जो लगातार चुकता जा रहा है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े त्योहार छठ पूजा पर कल पटना में ऐसा ही हादसा हो गया, जिसमें अठारह जानें चली गईं। राजस्थान के जोधपुर में मेहरानगढ़ के चामुण्डा मन्दिर में चार वर्ष पहले नवरात्रा के समय ऐसी ही भगदड़ मची जिसमें सैकड़ों जानें चली गईं। इस हादसे के शिकार हुओं में अधिकांश बीस से तीस साल के युवा थे। सन्तोष की बात है कि बीकानेर में अभी तक इस तरह का कोई हादसा हुआ नहीं। लेकिन किसी घटना का होना इस बात की गारंटी नहीं हो सकती कि भविष्य में कभी होगी ही नहीं।
बीकानेर जिले के श्रीकोलायतजी में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर बड़ा मेला भरता है जो कई दिन तक चलता है और पूर्णिमा के दिन कस्बे में श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा रहता है। यद्यपि कोलायत मेले का आकर्षण भी लगातार कम हो रहा है। अगर यह आकर्षण कम होता तो स्थितियां कोलायत में अब उस तरह की नहीं रह गई है कि लगातार बढ़ते श्रद्धालुओं को झेल सकें। कभी कोलायत सरोवर के सभी रास्ते या तो चौड़े हुआ करते थे या मैदान के मैदान खाली पड़े रहते थे। अब अधिकांश खुली जगहों में निर्माण हो गये हैं और चौड़े रास्ते अतिक्रमण के शिकार हैं। मेले के दौरान अतिक्रमण और भी बढ़ जाता है, जब रास्तों की जरूरत ज्यादा होती है। कोलायत का स्थानीय प्रशासन इस और मुस्तैद नहीं दिखाई देता। बाजार से होकर सरोवर जाने वाला रास्ता बहुत चौड़ा भी नहीं है, ऊपर से मेले में दुकान वाले भी बाहर तक दुकानें सजा लेते हैं। इन सब के प्रति सावचेती जरूरी है।
बीकानेर का सबसे श्रद्धालुप्रिय देवी मन्दिर नागणेचीजी का है जिसमें मूर्ति की स्थापना निर्माण करवा कर ऊँचाई पर की हुई है। श्रद्धालु लाइन लगा कर सीढ़ियां चढ़ कर देवी दर्शन को पहुंचते हैं। ऊपर तक आने और जाने का एक ही रास्ता है। 16वीं शताब्दी में स्थापित इस मन्दिर के वर्तमान भवन का निर्माण हुए भी लगभग सौ साल हो गये हैं। कहा जाता है कि लगातार प्रयोग में रहे भवनों की सुरक्षित उम्र सौ वर्ष के लगभग ही मानी जानी चाहिए। इस दृष्टि से नागणेचीजी मन्दिर भवन को इस पर भी जांचा परखा जाना चाहिए कि वह सैकड़ों लोगों का भार एक साथ उठाने में सक्षम है कि नहीं। यदि ऐसा है तो भी इसमें एक वैकल्पिक सीढ़ी की जरूरत तो है ही। देवस्थान विभाग और मन्दिर प्रबन्धकों को इस ओर ध्यान देना चाहिए। स्थानीय प्रशासन की भी जिम्मेदारी है कि वे इस बात की पुख्तगी कर लें कि कहीं उक्त कारणों के चलते कभी कोई हादसा तो नहीं हो जाएगा।
20 नवम्बर, 2012

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