Wednesday, October 17, 2012

जिला कलक्टर सावधान!


पिछले कुछ वर्षों से भाषा के साथ बड़ा झमेला हो रहा है, बात करें तो जवाब मिलता है-बात का मतलब समझ में रहा है कि हम क्या कहना और क्या करना चाहते हैं| वह यह कहने से भी नहीं चूकते कि हमारे इस करने और कहने के पीछे का छिपा एजेन्डा कुछेक को पता भी चले तो हमें कोई हर्ज नहीं है, हमारा मकसद पूरा हो रहा है , बस|
इस बात का सन्दर्भ अभी इसलिए बन पड़ा है कि-जिला कलक्टर के पद से स्थानान्तरित डॉ. पृथ्वी गये तब उनके अभिनन्दन का एक लम्बा सिलसिला चला-और नवागन्तुक जिला कलक्टर आरती डोगरा आईं तो ऐसा साक सिलसिला शुरू करने को हमारे यहां की स्वागत-अभिनन्दन टोलियां उत्सुक हैं| पर कुछ तो इसलिए कि वे महिला हैं और कुछ इसलिए कि उनके स्वभाव के बारे में जो सन्देश हवा में तारी है वह यह कि इन सबसे वह परहेज रखती हैं|
आरती डोगरा के पिछले सेवाकाल के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी जुटा चुकों का यह आकलन है कि नई जिला कलक्टर अपने काम से काम रखती हैं-या काम करने में ही उनका भरोसा है| लेकिन कुछेक टोलियों की कहें तो जैसे-तैसे या येन-केन प्रकारेण आरती डोगरा का अभिनन्दन करने में सफल हो ही गईं-अब इन टोलियों की अगुवाई करने वालों से कोई पूछे कि जिला कलक्टर अभी आईं-आईं है तो आते ही उन्होंने ऐसा क्या कर दिया कि उनका अभिनन्दन करने को आप प्रेरित हो गये! हां स्वागत करना तो समझ में आता है-कह सकते हैं कि आरती मूलतः प्रदेश के बाहर से हैं तो कम से कमआओ नी पधारो म्हारे देसकी रस्म अदायगी करते हैं|
वैसे जिला कलक्टरों के इस पद के कामों के बारे में मोटा-मोट जो जानकारी है उससे वैसीसीक समानता ही लगती है जैसे कि मनुष्य के दिमाग के सम्बन्ध में जो जानकारियां वैज्ञानिकों को अब तक बरामद हुई हैं| दिमाग के बारे में यह कहा जाता है कि मनुष्य अपने पूरे जीवन में ही दिमाग का मात्र तीस-इकतीस प्रतिशत से ज्यादा काम नहीं ले पाता है-ठीक इसी तरह जिला कलक्टर के इन पदों पर आने वाले यह अधिकारी अपने जिम्मे तय कामों में से अधिकतम तीस-पैंतीस प्रतिशत को ही अंजाम दे पाते हैं| ऐसा नहीं है कि इस पद पर आने वाले सभी अक्षम या कम सक्षम होते हैं| दरअसल हमारे इन नेताओं की नजर इतना सीमित देखती है कि इन से चलने वाली सरकारों को हर एक काम को सौंपने के लिए यह जिला कलक्टर ही नजर आते हैं, जो इनको रोजमर्रा के या सप्ताह के या महीनों के सौंपे हुए काम ही इतने हैं कि यदि वे चौबीसों घंटे भी उनको निबटाने में लगे रहें तो भी सभी जिम्मेदारियों में से तो आधी ही पूरी नहीं कर पाएंगे! फिर आये दिन के आकस्मिक झमेलों को अलग निबटाना होता है और यह भी कि कई नेताओं के अहम् को भी सहेजना होता है इनको!
और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन बात तो शहर के इन स्वागत और अभिनन्दन टोलियों की करनी थी- वह तो रह गई-इन टोलियों में कुछ तो ऐसे होते हैं कि वेबड़ेलोगों को माला पहना कर ही खुश-संतुष्ट हो लेते हैं तो कई ऐसे भी होते हैं जो इन अभिनन्दनों-स्वागतों के बहानेबड़ेलोगों के पट्टों में घुसने की (नजदीक होने) कोशिश करते हैं-कुछ इस बहाने छुटभैयों को यह सन्देश देने की कोशिश करके अपने काम निकलवा लेते हैं कि मेरीबड़ोंतक पहुंच है-इनको स्वागत-अभिनन्दन से कोई यह मतलब नहीं है कि जिनका स्वागत-अभिनन्दन कर रहे हैं-वह इसकी पात्रता रखते हैं या नहीं|
और शहरों में भी होता होगा लेकिन हमारे शहर में तो ऐसा भी होता है कि कईबड़ेलोग ऐसे भी होते हैं जो स्वागत-अभिनन्दन करवाने की इच्छा-बायड़ (तीव्र उत्कंठा) की हद तक रखते हैं| इनमें कुछ ऐसे होते हैं जो इन टोलियों से चला के मांगा (अपने अभिनन्दन की इच्छा जतलाना) कर देते हैं तो कुछ अपने अभिनन्दन का खर्चा भी उठाने को तैयार रहते हैं और उठाते भी हैं| वैसे अपने यहां जीवित-खर्च उठाने की परम्परा तो रही है!!
16 अक्टूबर, 2012

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