Monday, October 22, 2012

जिला कलक्टर को गम्भीरता से न लिया जाना


जिला कलक्टर आरती डोगरा को अपने को गम्भीरता से लिए जाने को गम्भीरता से लेना चाहिए| कहने का भाव इतना भर है कि उनके अधीनस्थ उन्हें गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं| इसका ताजा प्रमाण निर्वाचन विभाग के वार्षिक महा-अभियान के अन्तर्गत बीकानेर में कल आयोजित पहले चरण के बूथ स्तरीय कैम्पों में बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) कर्मचारियों का समय पर पहुंचना है|
वैसे हो यही गया है कि जिन-जिन कार्यालयों में जनता का काम पड़ता है-कमोबेश सभी जगह आमजन को गम्भीरता से नहीं लिया जाता-जबकि उसी जनता की समस्याओं और कामों को निबटाने के लिए ही जनता से प्राप्त राजस्व से ये कार्यालय बनाये चलाए जाते हैं और उनमें कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों को भारी तनख्वाहें दी जाती हैं| इस सबके लिए कह सकते हैं किकुएं में ही भांग पड़ी हुई हैऔर इस नशे को उतारने की जुगत अभी तक बैठी नहीं है|
लेकिन जिन चुनावी कामों को लेकर केवल यह आम धारणा है बल्कि कर्मचारियों को भी यह पुख्ता संदेश है कि इनमें लापरवाही नहीं चलती है-बावजूद इसके जिम्मेदार कर्मचारियों का बूथ स्तरीय कैम्पों में पहुंचना यही दर्शाता है कि वह जिला कलक्टर (जो जिला निर्वाचन अधिकारी भी होता है) को गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं| लापरवाह अधिकारियों कर्मचारियों को इस बात की परवाह तो दूर की बात है कि इस अभियान को लाखों रुपये खर्च से विज्ञापित और करोड़ों रुपये खर्च कर आयोजित कर आम मतदाता को बुलाया गया है इसलिए वे तय समय पर पहुंचें| इस तरह की परवाह करने की जिम्मेदारी आजादी बाद से धीरे-धीरे लगभग समाप्त हो गई है-लेकिन निर्वाचन आयोग का जिला कलक्टर को दिया डंडा भी काम करे यह चिन्ता की बड़ी बात है| उल्लेखनीय है कि पहले 15 अक्टूबर को विज्ञापित करके और फिर कल कैम्प के दिन फिर विज्ञापित कर देश के बालिग नागरिकों को अपने मतदाता होने की पुख्तगी करने को आमन्त्रित किया गया था, बूथों पर मतदाता तो पहुंच गये लेकिन कई कैम्पों पर तो बूथ लेवल ऑफिसर पहुंचे और उनको सहयोग करने वाले! पहुंचना राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भी था-वे कितने पहुंचे और कितने मुस्तैद रहे-इसकी जानकारी नहीं है| राजनीतिक कार्यकर्ता भी बिना ध्याड़ी के कहां पहुंचते हैं?
सभी जानते हैं भारतीय मतदाता अपने मत को लेकर वैसे भी गम्भीर नहीं है-अन्यथा देश इस मुकाम पर होता-उनमें से अधिकांश तो वोट देने जाना ही नहीं चाहते हैं और किसी दबाव में या प्रलोभन में या किसी के डर से वह वोट देने जाता भी है तो उसी को देगा जिसे ये ले जाने वाले या हांकने वाले दिलवाना चाहते हैं-जाहिर है इसी सबके चलते कैसे-कैसे नेता राज के नाम पर अपना और अपनों का घर भर रहे हैं-गरीब और भी गरीब होता जा रहा है और यहां तक कि वह नारकीय जिन्दगी जीने और मरने को मजबूर हैं| जिन-जिनके पास किसी भी प्रकार का थोड़ा भी सामर्थ्य है वह और समर्थ होते जा रहे हैं| और तो और, ये समर्थ अपना और अपने से प्रभावितों का वोट भी इस सौदेबाजी के साथ देते-दिलवाते हैं कि खुद उनका सामर्थ्य बढ़े|
चिन्ता की बात यही है कि जो अस्सी प्रतिशत मतदाता एक ही चुनाव में राज बदलने की ताकत रखते हैं उन्हें अपनी ताकत का भान नहीं है या कहें वे सभी इस रूप में दीक्षित नहीं है कि एक मतदाता नागरिक के रूप में उनकी ताकत क्या है और वे सही प्रतिनिधि चुन कर अपने लिए, अपने जैसों के लिए और देश के लिए क्या-क्या हासिल कर सकते हैं|
जिला कलक्टर महोदया! यह कैम्प 28 अक्टूबर और 4 नवम्बर को फिर होने हैं-इस बात की पुख्तगी कर लें कि आज छपी जैसी खबरें 29 अक्टूबर और 5 नवम्बर के अखबारों में फिर छपे| अपने अधीनस्थों को इस तरह का संदेश भी पहुंचाए कि वह भविष्य में आपको गम्भीरता से लेने की जुर्रत करें!
22 अक्टूबर, 2012

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