बात पिछली सदी के आठवें दशक के शुरुवात की है-सन् 1971 के युद्ध में जीत के जोश से देश सराबोर था-प्रमुख विपक्षी नेताओं में से एक अटल बिहारी वाजपेयी ने इन्दिरा गांधी की तुलना दुर्गा से की थी| इन्दिरा के छोटे बेटे संजय गांधी सुर्खियां बटोरने लगे थे-युवा थे और शायद तब उनका सपना नेता बनने का नहीं-उद्योगपति बनने का था| उनका सपना था छोटी कार बनाने का| आज की यह मारुति 800 उन्हीं के सपने का साकार रूप है| कारों का कारखाना कोई रानी बाजार, बीछवाल या करणीनगर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में तो लग नहीं सकता, सो हरियाणा के तब के मुख्यमंत्री चौ. बंशीलाल ने उन्हें गुड़गांव में लम्बी-चौड़ी जमीन आवंटित कर दी-तब वहां की जमीनों की कोई खास कीमत नहीं थी-अब तो वहां के भाव भी सुनें तो लगता है कानों में शीशा उंडेल दिया गया हो| आज यदि संजय होते तो आपसदारी तो पता नहीं कैसी होती-पर रॉबर्ट वाड्रा जरूरत होने पर उन्हें चाचा श्वसुर ही बताते|
आपातकाल से पहले के उन्हीं वर्षों की बात है| कांग्रेस के विपक्ष के एक बड़े नेता बीकानेर आये थे| किसी आमसभा में संजय-बंशीलाल के संवाद का नाट्य रूपांतरण करके लगभग इस तरह बताया कि जैसे वह भी तत्समय वहां उपस्थित थे| उन्होंने बताया कि संजय जब मां इन्दिरा से कारखाने के लिए जमीन दिलवाने की जिद कर रहे थे तभी चौधरी बंशीलाल वहां पहुंच गये-उन्होंने सुना तो झट से बोल पड़े-‘अरे बेटा! इत्ती सी बात के लिए मां को क्यों परेशान करते हो-गुड़गांव यहां से ज्यादा दूर नहीं है-चलो चाहे जितनी जगह लो’|
कल जब खबरिया चैनलों में अरविन्द केजरीवाल रॉबर्ट वाड्रा की सम्पत्ति का खुलासा कर रहे थे तो बीकानेर की उस आम सभा का दृश्य बाइस्कोप की तरह दीखने लगा-दृश्य कुछ वैसा सा ही था बस पात्र बदल गये थे-संजय की जगह उनके भतीजी-दामाद रॉबर्ट वाड्रा थे तो चौ. बंशीलाल की जगह चौ. भूपिन्द्रसिंह हुड्डा और इन्दिरा की जगह सोनिया गांधी दीखने लगीं|
खैर, छोड़िये समय और यह जगह यूं ही जाया हो रही है| अपने को अपने शहर ही लौट आना चाहिए| पिछले एक साल से चली आ रही एक उत्सुकता चारे’क महीनों से असमंजसता से भी गुत्थमगुत्था होने लगी| शहर में व्याप्त ध्वनि तरंगों से साले’क भर से यह स्वर सुनाई दे रहा था कि रॉबर्ट वाड्रा ने शहर को कृतार्थ किया है-उन्होंने जैसलमेर रोड पर नाल के आस-पास लम्बी-चौड़ी जमीनें खरीदी हैं-और कहा जा रहा है तब से ही नाल के आस-पास की जमीनों के भावों के पंख लग गये हैं-लेकिन पता नहीं शहर की बातें गलत हैं या अरविन्द केजरीवाल की सूचनाएं अधूरी हैं-केजरीवाल की फेहरिस्त में तो बीकानेर के पास वाड्रा की ‘मात्र’ एक करोड़ की एक सौ साठ एकड़ जमीन ही बताई गई है! चलो यह मुद्दा भी उनके लिए छोड़ देते हैं जो जमीनों का काम करते-करते नेतागिरी करने लगे हैं या उन नेताओं के लिए छोड़ देते हैं कि जो जमीनों का धंधा भी करने लगे हैं|
उत्सुकता को धरी रहने दो-बात असमंजस की ओर ले चलते हैं-अपने यहां हाल ही में एसपी थे डॉ. हबीब खां गौरान| जैसी भी उनसे बन पड़ती, ड्यूटी कर ही रहे थे कि अचानक उन्हें राजस्थान लोकसेवा आयोग का सदस्य बना कर भेज दिया गया| अभी वह पूरी तरह सदस्यता का दायित्व समझ ही नहीं पाये कि उन्हें आयोग का चेयरमैन बना दिया गया| तब से ही यह असमंजसता थी कि डॉ. गौरान ने ऐसा क्या कर दिया कि उनको यह सब चुटकी में हासिल हो गया| किसी अल्पसंख्यक को ही यह पद देना था तो राज के पास कमी थोड़े ही थी-एक से एक वफादार और ‘काबिल’ टकटकी लगाए बैठे हैं, और यह भी कि केवल इस भर से ही यह पद नहीं मिल सकता कि गौरान बीकानेर में एसपी होने से पहले मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात थे!
कल से ट्यूबलाइट टिमटिमाने लगी-कहा जाता है कि जमीनों की खरीद-फरोख्त के चलते एक से अधिक बार वाड्रा यहां आए थे-सबकुछ को अति गोपनीय तरीके से ‘मैनेज’ करने का इनाम तो गौरान को नहीं मिला है कहीं? कोई भनक आपके पास हो तो साझा क्यों नहीं करते हो-ठेका क्या अकेले अन्ना ने या केजरीवाल ने ही उठा रखा है? वैसे भी केजरीवाल को अब राजनीति करनी है|
6 अक्टूबर, 2012
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