Tuesday, October 23, 2012

गोपाल जोशी : हेकड़ी न सही आत्मसम्मान तो बनाए रखें


इस तेरहवीं विधानसभा का नवां सत्र अभी हाल में सम्पन्न हुआ है| 10 अक्टूबर को पहले दिन नेता प्रतिपक्ष के विधानसभा पहुंचने के समय भाजपा विधायक उनकी अगवानी में पंक्तिबद्ध खड़े थे-रीढ़विहीनों के लिए इस सामन्ती अभ्यास से कोई फर्क नहीं पड़ता होगा-लेकिन लोकतन्त्र के पांव इसी तरह के अभ्यासों के चलते जरूर कमजोर होते जा रहे हैं| इस सब को सुन-देख कर पेट में बळ इसलिए पड़ा कि बीकानेर पश्चिम के विधायक गोपाल जोशी भी उसी पंक्ति में खड़े थे| मुहतरमा की सामन्ती ठसक को पुष्ट करने के लिए अन्य विधायकों को यह जरूरी भी लगता हो तो भी 55-60 साल से राजनीति में सक्रिय और अस्सी के लगभग के गोपाल जोशी को दरबारी के रूप में खड़े होने से छूट मिल ही सकती थी| लगता है वे 2013 के चुनाव को लेकर इतने सचेत हैं कि कोई रिस्क उठाना नहीं चाहते!
कल फिर वही गोपाल जोशी राजेन्द्र राठौड़ की अगवानी के लिए केवल सरकिट हाउस पहुंच गये बल्कि कमरे या लॉबी में इन्तजार कर आने की सूचना मिलने पर राठौड़ की अगवानी के लिए बाहर भी गये| राजेन्द्र राठौड़ की उम्र और राजनीतिक पारी दोनों ही जोशी से बमुश्किल आधी होगी|
2013 का विधानसभा चुनाव गोपाल जोशी फिर से भाजपा के टिकट पर बीकानेर पश्चिम से ही लड़ना चाहते हैं-और इसी के चलते वह अपनी उस अभिजात्य राजनीति को भी दरकिनार कर चुके हैं-जिसके कारण अकसर उनकी आलोचना होती रही है-गोपाल जोशी ने अपनी इसी ठसकीय राजनीति और हेकड़ी से हासिल तो पता नहीं अब तक क्या किया-लेकिन खोने की फेहरिस्त ठीक ठाक है| लोक की भाषा में बात करें तोपहली रहता यूं तो तबला जाता क्यूं|’ इसी सबके चलते 1972 के चुनावों के बाद कहां-कहां किस-किस तरह से पापड़ उन्होंने बेले हैं सभी जानते हैं|
सन् 1972 में तब गोपाल जोशी पहली बार विधायक बने-बने ही थे-पूरे संभाग के छात्र बीकानेर में विश्वविद्यालय की मांग को लेकर आन्दोलनरत थे-उस तरह का आन्दोलन आज तक नहीं देखा गया| इसी कलक्ट्री के सामने प्रतिदिन सांकेतिक भूख हड़ताल चलती थी-आज की तरह नहीं-तब पूरे 24 घण्टे की होती थी-भूख हड़ताली पंडाल छोड़ कर नहीं जाते थे| सत्ता पार्टी के विधायक रहते गोपाल जोशी भी एक दिन भूख हड़ताल पर बैठे| खूब वाह-वाहियां लीं| लेकिन तभी पार्टी का इशारा हो गया होगा कि यह पार्टी लाइन नहीं है-गोपाल जोशी ने छात्र संघर्ष समिति से रुख मिलाना छोड़ दिया| एक दिन बड़ी मुश्किल से मिलने का समय दिया-इसी सरकिट हाउस के लॉन में मिले-छात्र उद्वेलित थे बात शुरू भी नहीं हुई थी कि भीड़ से घिरे जोशी उचक गये किकिसी ने मुझे लात मारी है-अब मैं आप से बात नहीं करूंगा’-हो सकता है ऐसा हुआ हो| लेकिन उसके बाद जोशी इस आन्दोलन को असफल करने के लिए उस स्तर तक चले गये, जो उनकी छवि के अनुकूल नहीं था-बरकतुल्ला खां मुख्यमंत्री थे-दबाव डाला होगा कि समझौता करवाकर आन्दोलन को किसी तरह से समाप्त या स्थगित करवाया जाय| जोशी संघर्ष समिति से संवाद खत्म कर चुके थे, उनकी हेकड़ी इतनी कि दुबारा संवाद कैसे शुरू हो! अचानक समाचार आता है कि सरकार और छात्र संघर्ष समिति के बीच समझौता हो गया और छात्रों ने आन्दोलन वापस ले लिया| तीसरे दिन पता चला कि जोशी ने संघर्ष समिति के फर्जी अध्यक्ष और महामंत्री को सरकार के सामने पेश कर समझौता करवा दिया-कहते हैं उस डमी अध्यक्ष को इनाम के रूप में सरकारी नौकरी से नवाजा गया| तब संघर्ष समिति के असल अध्यक्ष आज की जनकिसान पंचायत के जयनारायण व्यास थे और महासचिव हरिराम चौधरी-दुर्भाग्य से थोड़े समय बाद ही चौधरी दुर्घटनाग्रस्त हो कर चल बसे|
ऐसे ही रिश्ते में साले बी.डी. कल्ला ने अपनी राजनीतिक इच्छा जाहिर करनी शुरू की तो जोशी और जोशी खेमे ने पहले तो उन्हें गम्भीरता से नहीं लिया-फिर कल्ला मुखर हुए तो कहा जाता है कि कल्ला कहीं से गुजरते तो जोशी समर्थक बीड़ी-बीड़ी कह कर उन्हें उड़ाते थे-तब कल्ला साइकल पर चलते थे और उनकी स्थिति यह थी कि वह गोपाल जोशी से रू-बरू होने से बचते थे और रू-बरू होते भी थे तो आंख मिला कर बात करने में संकोच करते थे, जबकि कल्ला खुद कॉलेज व्याख्याता थे तब| ऐसा रुतबा था गोपाल जोशी का| 1980 में उन्हीं कल्ला ने शहर विधानसभा क्षेत्र से जोशी को ऐसा बाहर किया कि वे 1972 के बाद 2008 तक क्षेत्र में नहीं लौट सके-2003 में तब भी नहीं जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर लूनकरणसर से देवीसिंह भाटी की पार्टी से चुनाव लड़ा-तब भी यदि वे भाटी की ही पार्टी से बीकानेर शहर से चुनाव लड़ते तो 2008 में भाजपा का टिकट उन्हें ज्यादा आसानी से मिलता और 2013 की दावेदारी भी पुख्ता होती-तब शायद उनकी हेकड़ी या कहें आत्मसम्मान रोक रहा होगा कि कल को बीडी कल्ला से हार गये तो! 2008 का चुनाव जोशी के लिए जीवन का सबसे चुनौती भरा चुनाव था और उन्होंने उसे उसी तरह लड़ा और जीता भी|
2013 का चुनाव 2008 के जैसा साबित शायद हो-एक तो कल्ला बन्धु इसे उसी तरह लड़ेंगे जैसे जोशी ने 2008 का चुनाव लड़ा था-दूसरा नन्दू महाराज भी यह तय कर चुके हैं कि 2013 का चुनाव उन्हें भी बीकानेर पश्चिम से ही लड़ना है-पार्टी की परवाह नन्दू महाराज भी उतनी ही करते हैं जितनी देवीसिंह भाटी!
इस परिदृश्य में गोपाल जोशी से उम्मीद तो यही रखते हैं कि हेकड़ी सही वह आत्म सम्मान तो बनाये रखें|
23 अक्टूबर, 2012

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