Friday, October 12, 2012

इस खबर पर ठिठके हों तो उम्मीदें कायम रखना


खबर है कि जिले की लूनकरणसर तहसील के दो व्यक्ति, एक अस्वस्थ महिला को बीकानेर के पीबीएम अस्पताल पहुंचा कर चले जाते हैं, बाद में इलाज के दौरान उस महिला की मौत हो जाती है| महिला के साथ चार साल की एक लड़की भी है| महिला की मृत्यु हो गई और कोई बालिग साथ नहीं था इसलिए अस्पताल का ड्यूटी स्टाफ उसके शव को गलियारे में खिसका देते हैं-इस पूरे माजरे से नावाकिफ वह चार साल की लड़की सिवाय रोने बिलखने के कुछ नहीं कह-बता पा रही थी-वह मासूम ऐसे समय में इतना भर ही कर सकती है! वे दो व्यक्ति जो उस महिला को लूनकरणसर से लाकर यहां अस्पताल में छोड़ गये थे-उनका इस महिला से किसी तरह का सम्बन्ध सचमुच नहीं था-केवल मानवीय आधार पर ही उन्होंने ऐसा किया है तो केवल यह सराहनीय है बल्कि उनके इस काम को हमें-हम में बची-खुची मानवीयता के उदाहरण के रूप में देखना चाहिए-उन्होंने जितना किया पर्याप्त था-थोड़ा और समय देते तो हो सकता है कि वे शक और संशय के घेरे में आते और अनावश्यक पूछताछ और कानूनी पेचीदगियों में फंस जाते| अपने कानून ही कुछ ऐसे हैं और कुछ उनका लागू करने का तरीका भी ऐसा है कि, यदि कोई मानवीय होना भी चाहे तो इस तरह के झमेले उसे मानवीय होने से रोकते हैं| मृतका का कोई पारिवारिक या निकटस्थ नहीं आता है तो होगा यही कि बच्ची को तो बालगृह में भेज दिया जायेगा और उसकी मां के शव को कानूनी औपचारिकता भर तक के लिए शवगृह में रखा जायेगा और बाद में लावारिस शवों के लिए तय नियमों के हिसाब से उसका अन्तिम संस्कार कर दिया जायेगा|
ऊपर जो कुछ भी लिखा गया है उसमें या तो घटना बताई गई है और या फिर उस दस्तूर का जिक्र है जिसे आए दिन होने वाली ऐसी घटनाओं के समय पूरा किया जाता है-कह सकते हैं इसमें ऐसा क्या कि जिसे सम्पादकीय के रूप में बताया जाय| मकसद इतना भर है कि इसे पढ़ कर आपका दिलो-दिमाग क्षण भर के लिए ही सही-ठिठकता है क्या? और ठिठकता है तो समाज के मानवीय होने की उम्मीदें भी कायम हैं!!
12 अक्टूबर, 2012

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